(लघु लोक-कथा)
करारनामा
एक बार बिल्ली को अपनी
संतान की शादी करनी थी। लेकिन शादी की तैयारियों के लिए उसके पास पैसे नहीं थे।
इसलिए वह अपने मित्र कुत्ते के पास पाँच रूपये उधार मांगने के लिए गई। कुत्ते ने
खुशी-खुशी उसे रुपये दे दिए, और साथ में यह करारनामा भी लिख कर दे दिया कि जब कभी बिल्ली
के पास रुपये होगें तब वापिस दे देगी। कुत्ता उस पर रुपये लौटाने के लिए दबाब नहीं
डालेगा। बिल्ली उन रुपयों से अपनी संतान की शादी की तैयारियों में लग गई, और करारनामे को एक कोने में रख दिया। उस कोने के पास ही चूहों
के बिल थे। उन चूहों ने उस करारनामे को कुतर दिया। उधर शादी होते ही वह कुत्ता
करारनामे से मुकर गया, और बिल्ली से पैसे मांगने
लग गया। बिल्ली ने उसे समझाया कि अभी उसके पास पैसे नहीं हैं। साथ ही उसे करारनामे
की याद दिलायी, लेकिन कुत्ता नहीं माना तो
बिल्ली उस करारनामे को लेने गई। बिल्ली ने उस कोने के पास देखा कि चूहों ने उसके
करारनामे को कुतर दिया है तो बिल्ली को बहुत गुस्सा आया, ओर वह चूहों के पीछे भागी, चूहे झट से अपने बिल में घुस गये। बिल्ली भी कुत्ते के डर
से छुपछुप कर रहने लगी। तभी से जब कभी भी कुत्ता बिल्ली को देखता है तो वह अपने
पाँच रुपये बिल्ली से वापिस लेने के लिए उसके पीछे भागता है, और बिल्ली के करारनामे को कुतर देने के कारण बिल्ली चूहों
के पीछे भागती है।
(राजस्थान के सवाईमाधोपुर एंव करौली जिले के माड़ क्षेत्र की
लोक कथा)
सुशीला मीणा
शोधार्थी
(हिन्दी
विभाग)
मकान बना दुकान
श्रीनिवास मंदिर
की सिढ़ियों पर बैठा कुछ सोच रहा था। दर्शन करने के बाद श्रीनिवास का मित्र
रामनिवास ने श्रीनिवास से पुछा,
“इत्ते टेंशन में कयकू है मिया क्या सोचरे?” श्रीनिवास कहता है, “कुछ नहीं यार पेन्शन के
पैसों से मकान बनवाया लेकिन कोई भी आकर कम्पाउन्ड की दीवार धार मार के चला जाता
है।” रामनिवास बोला, “इसमें
कौन-सी नई बात है मिया ऐसा हर दिवार पर होता। इसके के लिए कुछ किया की नहीं?”
श्रीनिवास उदास स्वर में कहता है, “बहुत
किया मियाँ ..दिवारों पर हिन्दी, अंग्रेजी, तेलुगु में लिखा कृपया यहाँ नको करों
बोलके लिखा, लोगाँ नहीं सुनरे बोलके मैंने दिवार पर लिखा अबे गधे यहाँ मत कर, खतरे
की निशानी भी बनाई लेकिन लोगाँ सुनतेच नैय” श्रीनिवास,
“हो ऐसा है क्या एक काम करों तुम हर दिवार भगवान का फोटो लगाओ,
मेरेकु भी ऐसा ही सता रहे थे, मैने दिवार भगवान पर फोटो लगाये, अब लोगा आते जाते
फोटो को नमस्कार करके चले जाते” श्रीनिवास खुश होते हुए
बोला, “मैं भी ऐसाईच करतूँ”
कुछ दिनों बाद
उसी मंदिर में फिर श्रीनिवास सोचते हुए बैठा था, रामनिवास ने आकर श्रीनिवास का हाल
पुछा। जवाब ने श्रीनिवास ने कहा,
“अरे यार दिवार पर भगवान के फोटो लगाने के बाद कुछ मजदुर फोटो की
पुजा कर्रे, अब तो कुछ दिनां बाद तो वहाँ सबेरे-शाम आरती होने लगी, सबेरे की नींद
हराम हो गई है.. क्या करूँ समझ में नहीं आरा?” रामनिवास
ने मुस्कारते हुए कहा, “इसमे इत्ता कयकू सोचरा मियाँ?
यह तो खुशी की बात है, तुम्हारे घर तो लक्ष्मी चलकर आ रही है, बस
इतना करों कोई दुसरा पुजारी आने से पहले खुद वहाँ पुजारी बन जाओं, रिटार्यमेंन्ट के
बाद आमदनी का अच्छा काम है, आई कुछ बात समझ में”
श्रीनिवास ने मुस्कुराते हुए कहा, “बात तो कुछ-कुछ समझ
में आरी..”
अब रामनिवास
गाँव के मंदिर नहीं आते अब वे अपने काम में व्यस्त रहते हैं। उनका दिल भी बहलता है
और आमदनी भी घर बैठे हो जाती है।
काले
विनायक
शोधार्थी,
हिन्दी विभाग,
हैदराबाद विश्वविद्यालय
हत्या–आत्महत्या
“अरे गोबर सुना है सरकार ने
मनरेगा के अंतर्गत तुम्हें सौ दिन का काम दिया है।”
“हा चाचा” गोबर ने कहा।
“लेकिन बेटा तुम्हारे साथ
तुम्हारे पिता होरी दिखाई नहीं दे रहे है” चाचा ने कहा।
“नहीं चाचा वह इस काम पर नहीं आते वह अपने खेतों में ही काम करते हैं,
वहीं उनको फुरसत नहीं मिलती है, मैंने
कहा भी था चलो मनरेगा के काम पर, तो उन्होंने कहा मैं एक
किसान हूँ किसानियत में ही मेरी इज्जत है, मैं यही करना
पसंद करूंगा”।
“लेकिन बेटा यह सरकार मजदूरों
के लिए तो काम मुहैय्या करा रही है पर किसानों के लिए क्यूँ कुछ नहीं करती,
किसान भी तो गरीब ही होते हैं” चाचा
समझा रहे थे।
लेकिन गोबर बात
बदल देता है “सुना है पुष्पा के पिताजी ने आत्महत्या की है, ऐसी क्या मज़बूरी थी चाचा उनको” ?
“अरे गोबर तू कितना भोला है रे।
सारा गाँव जानता है कि दहेज़ में कम पैसों के कारण पुष्पा के घर वालों ने उसे घर से
निकाल दिया। देखो बेटा जब घर में तीन–तीन जवान बेटियां
हों तो बाप पर क्या गुजरती है यह वही जानता है” चाचा ने
गोबर को पुष्पा के घर का पूरा विवरण बताया।
“बेटा तुम्हारे पिता होरी की
तरह थोड़े ही होते है जो ढाढस बांधकर अपने बिरादरी की नाक न कट जाये इसलिए जी रहे
है अपने इज्जत के खातिर” चाचा थोडा रुककर और कहते है।
“लेकिन बेटा इस समाज में पुष्पा
के पिता की तरह ऐसे कितने लोग हैं जो हर दिन आत्महत्या करने पर मजबूर है”।
“बेटा यह सरकार किसानों की तरफ
क्यों नहीं देख रही है ? इसका कोई इलाज नहीं इनके पास”
चाचा के आँखों में आंसू आ गए।
“हा चाचा यह बात तो बिलकुल मेरे
ध्यान में आई ही नहीं”।
एक तरफ पुष्पा के पिता तथा दूसरी ओर सरकारी
योजनाओं के विचार में गोबर सोचते हुए खो जाता है।
माधनुरे
श्यामसुंदर
शोधार्थी,
हिंदी विभाग
बिंदो
शाम ढल गई थी। झींगुर की आवाज से अमावश की रात और भी भयावह
लग रही थी। चांदनी के बिना आकाश में टंगे तारें निष्प्राण लग रहे थे। पता नहीं
सिसकते सिसकते बिंदो को कब नींद आ गई।
आज माँ को किसी ने बताया कि बिंदो मास्टर साहब के छोटे भाई
के साथ हंस हंस कर बात कर रही थी। बस ! माँ पर पूतना सवार हो गयी। धान के अंटिये
की तरह देंगा दिया मासूम को। बेचारी बिंदो को क्या पता कि हमउम्र लड़कों से बात
करना इतनी बड़ा गुनाह है। वह तो गांव के सभी लोगों की तरह मास्टर साहब को मा’साब और उनके छोटे भाई को मोहना कहती है। जब भी मोहना उसकी गली
में आता है तो वह उससे बीजगणित का हिसाब सीखती है, बस और तो
कुछ भी नहीं। पर इतनी सी बात के लिए माँ ने बेरहमी से पीट दिया अपने कोख में पली
दुलारी को।
सुबह हो चुकी थी। बिंदो जग गयी, पर बेजान सी बिस्तर पर पड़ी थी। समूचा शरीर पोर पोर हो गया था।
गरम मांर में हाथ पड़ते से एक बड़ा सा फफोला निकल आया था। माँ का तांडवी रूप अभी भी
उसके आँखों के सामने घूम रहा था। उसकी अपनी चीखें अभी भी उसके कानो में गूंज रही
थी। बिंदो ने मन हीं मन कसम खाई.. “अब कभी भी मोहना से बात
नहीं करुँगी...! कुछ भी नहीं पूछूंगी...!!
शाम हो गई थी। दिया बाती देकर बिंदो पढ़ने बैठी थी, कि तभी लगा आंगन में कोई खड़ा है। माँ रसोई में थी। बिंदो डर
गयी। पर मन की उत्सुकता ने उसे आंगन में ले आया। देखा मोहना सामने खड़ा है। बिंदो
साहस कर पास आयी। कुछ पल तक यूँ हीं एक दूसरे की आँखों में झांकते रहे। मोहना थोड़ा
और नजदीक आ गया। बिंदो निरीह-सी अपनी हथेली पसार दी। मोहना तड़प उठा... हाथ बढ़ा कर
छूना चाहा... बिंदो चिहुक गयी। बिंदो ने देखा, जितना दर्द वह
महसूस कर रही है उससे कहीं ज्यादा मोहना की आँखों में तैर रहा है...। रसोईघर से
प्याज तलने जैसी महक आयी और एक कड़क आवाज... “चम्मचा मांज कर
कहाँ रखी...? अरी ओ...कहाँ मर गयी...?” माँ की आवाज सुन मोहना आंगन से चला गया। बिंदो आंगन का दरवाजा बंद कर
रसोईघर में चली गयी।
कृष्ण सोनी
शोधार्थी, हिंदी विभाग
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