सम्पादकीय



सम्पादकीय
        भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, साथ ही उत्तरोत्तर विकास के पथ पर अग्रसर भी है। तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में भारत ने निश्चित रूप से अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। लेकिन इन सबसे इतर मैं मानव जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं, बदलाव की दशाओं और विकास के स्वरुप पर प्रकाश डालना चाहूँगा।
        यह प्रश्न बार-बार मन में कौंधता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के भीतर एक ‘मुकम्मल लोकतंत्र’ की आवश्यकता क्या आज भी बनी हुई नहीं है ? स्वतंत्रता के तक़रीबन 66 वर्ष बाद भी क्यों देश जातिवाद, साम्प्रदायिकता, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, असमानता और अपराध के शिकंजे में जकड़ा हुआ है ? भले ही हम इन मसलों का कारण भूमंडलीकरण, बाजारवाद और पूंजी केन्द्रित समय की सूक्ष्म तहों में खोज भी निकाले लेकिन यह तो तय है कि गंभीर चिंतन, सूक्ष्म विश्लेषण और ठोस कार्यान्वयन के अभाव में इसका हल निकालना संभव नहीं है।
        साहित्य केवल मनुष्य की भावनाओं, इच्छाओं और अनुभवों का लेखा-जोखा भर नहीं है बल्कि मनुष्य की वैचारिकी को विस्तृत और पुष्ट करने तथा यथार्थ को सुसंगठित भाषा में मनुष्य हृदय तक पहुँचाने का कार्य भी करता है। जब मैं ‘वैचारिकी’ की बात कर रहा हूँ तो वे तमाम विमर्श बरबस ही सार्थक जान पड़ते हैं जो अपनी वैचारिकी के बल पर समाज को बदलने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ जहाँ दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श तथा स्त्री विमर्श अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए सतत प्रयत्नशील हैं, वहीं दूसरी तरफ आदिवासी क्षेत्रों का निरंतर अधिग्रहण और हत्याएं, दलितों का दमन, कन्या भ्रूण हत्या और ऑनर किलिंग की घटनाएं कभी मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज के रूप में छाई रहती हैं तो कभी इनकी नोटिस भी नहीं ली जाती है। तात्पर्य यह है कि जब तक समाज मानसिक रूप से बदलाव को स्वीकार नहीं करेगा तब तक बदलाव की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती।
       प्रस्तुत अंक में युवा नवोदित रचनाकारों की कलम ने अपने समय की समस्याओं, स्थितियों और बदलाव को छूने का बखूबी प्रयत्न किया है। कुछ लेखकों की रचनाएं जो इस अंक में प्रकाशित नहीं हो पाई है, वह अगले अंक में प्रकाशित होंगी। आशा है ‘इत्यादि’ पत्रिका को आप सभी युवा लेखकों और पाठकों का सतत सहयोग मिलता रहेगा। नवोदित लेखकों की लेखकीय प्रतिभा और ऊर्जा से युक्त यह अंक आपके समक्ष प्रस्तुत है।
धनंजय कुमार चौबे

2 comments:

  1. great to see it again ....but it must proceed....

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    1. bahut bahut dhyavaad,,,,hum ise jarur aage badhatengen...

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